Abstract
International Journal of Advance Research in Multidisciplinary, 2024;2(1):429-431
प्राथमिक शिक्षा के विकास में गुणवत्ता को विकसित करने वाले भिन्न-भिन्न कारकों का संक्षिप्त मूल्यांकन
Author : मनीषा सिंघल, डाॅ. विकेश कामरा
Abstract
भारत एक विविध्ता प्रधान देश है। इसके समाज में बहुत सी भिन्नताएं हैं। प्राचीन काल से ही भारतीय समाज में मानवीय मूल्यों को प्राथमिकता दी जाती रही है और इन मानवीय मूल्यों के विकास में शिक्षा का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। सामाजिक-आर्थिक व तकनीकी परिवर्तनों के कारण धीरे-धीरे मानवीय मूल्यों का पतन हो रहा है। यद्यपि शैक्षिक व्यवस्था में सदैव मूल्यों के विकास पर जोर दिया जाता रहा है, तथापि वैश्वीकरण, पाश्चात्यीकरण और आधुनिकीकरण के परिप्रेक्ष्य को न समझ पाने की स्थिति में इन प्रक्रियाओं को हमारे समाज पर हावी होने दिया जा रहा है, जिससे मूल्यों के ह्रास की स्थिति गंभीर होती जा रही है। शिक्षा मानव विकास का मूल साधन है। इसके द्वारा मनुष्य की जन्मजात शक्तियों का विकास उसके ज्ञान एवं कला-कौशल में वृद्धि एवं व्यवहार में परिवर्तन किया जाता है और उसे सभ्य, सुसंस्कृत एवं योग्य नागरिक बनाया जाता है। नवजात शिशु असहाय अवस्था में जन्म लेता है। शिशु बोलना, चलना-फिरना कुछ नहीं जानता। सांसारिक भेद-भाव से रहित कोमल शिशु का कोई शत्रु अथवा मित्र नहीं होता है। सामाजिक परम्पराओं, समस्याओं, रस्मों का ज्ञान उसको नहीं होता और न ही किसी आदर्श अथवा नैतिक मूल्यों को प्राप्त करने की जिज्ञासा पाई जाती है। शिशु की आयु बढ़ने के साथ-साथ उसमें शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक परिवर्तन आते-जाते हैं तथा इसके साथ ही उसमें सामाजिक भावना भी विकसत होती जाती है। हमारे देश भारत में आज प्राथमिक शिक्षा की क्या स्थिति है, इसमें क्या दोष आ गये है सरकार की ओर से इसमें गुणात्मक सुधार हेतु क्या-क्या योजनाऐं चलाई जा रहीं है, विद्यालय में भौतिक सुविधाओं की क्या उपलब्धता है। कक्षा-कक्ष शिक्षण-अधिगम में क्या गुणात्मकता लाई जा सकती है। प्रस्तुत शोध आलेख में शोधार्थिनी ने इन्हीं प्रमुख बिन्दुओं पर चर्चा की है। शिक्षा से व्यक्ति का सर्वांगीण विकास होता है। शिक्षा एक ऐसी नींव है जिस पर हमारा जीवन रूपी महल खड़ा होता है वर्तमान समय में मूल्य आधारित शिक्षा पर सबसे अधिक बल दिया जा रहा है। विद्यार्थी जीवन बड़ा ही कोमल होता है वह ऐसा संगीत होता है जिसकी धुन आगे चलकर एक अनुठा संगीत बन जाती है। वर्तमान समय में देश की आर्थिक समृद्धि में मानवीय क्षमताऐं एवं योग्यताओं को महत्व दिया जाता है। इन मानवीय क्षमताओं और योग्यताओं को सुधारने का कार्य शिक्षा की सहायता से किया जाता है। वर्तमान समय में योग्य अध्यापकों एवं शिक्षण अधिगम की उपयुक्त व्यवस्था का होना अति आवश्यक है।
Keywords
प्राथमिक शिक्षा, विकास, प्राचीन काल, सामाजिक परम्पराओं, भौतिक सुविधाओं