Abstract
International Journal of Advance Research in Multidisciplinary, 2024;2(1):432-435
भारत में स्वतन्त्रता पूर्व एवं स्वतन्त्रता के पश्चात प्राथमिक शिक्षा के विकास का संक्षिप्त मूल्यांकन
Author : ममता मेहरा, डाॅ. विकेश कामरा
Abstract
प्राथमिक शिक्षा विकासशील देशों के विकास में अहम भूमिका निभाती है। मानव जीवन में शिक्षा का बहुत महत्व है। शिक्षा के बिना मानव जीवन के विकास की कल्पना करना संभव नहीं है। शिक्षा को प्राथमिक, माध्यमिक, उच्च और विशिष्ट वर्गों में बाँटा गया है। प्राथमिक शिक्षा बालक की भौतिक, मानसिक, सामाजिक भावनात्मक, नैतिक आवश्यकताओं को पूरा करके व्यक्तित्व का विकास करती हैं। यह शिक्षा बालकों में नैतिक गुणों को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं इसके साथ-साथ देशप्रेम की भावना भी जागृत करती हैं। प्रथमिकी शिक्षा आगे की शिक्षा की नींव होती हैं इसलिए इसे मुख्य शिक्षा भी कहते हैं। प्रारंभ में भी दी जाने वाली शिक्षा को प्राथमिक शिक्षा के अन्तर्गत रखा जाता है। शिक्षा मनुष्य के आंतरिक गुणों के विकास करने की प्रक्रिया है। हमारे धर्म ग्रंथों मंे ऐसी अनेक सूक्तियाँ हैं जो शिक्षा के स्वरूप को पूर्णतः स्पष्ट करती हैं। जैसे ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय‘ जिसका अर्थ है कि शिक्षा वह है जो हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाए। शिक्षा किसी भी समाज या राष्ट्र को विकसित एवं आत्मनिर्भर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। शिक्षा मानव निर्माण की प्रक्रिया है जिसके माध्यम से व्यक्ति का सर्वांगीण विकास सुनिश्चित किया जाता है। शिक्षा द्वारा ही व्यक्ति को सभ्य, सुसंस्कृत एवं कुशल बनाकर उसे समाज तथा राष्ट्र के लिए उपयोगी बनाया जाता है। किसी देश की प्रगति में उस देश की शिक्षा व्यवस्था का महत्वपूर्ण भूमिका होती है। प्राथमिक शिक्षा सम्पूर्ण शिक्षा व्यवस्था की आरम्भिक कड़ी व आधारशिला है तथा इसका प्रभाव शिक्षा के सभी स्तरों पर परिलक्षित होता है। जितने भी मानव अधिकार बताए गये हैं उनका सही ढ़ग से उपयोग शिक्षा प्राप्त करने से ही सम्भव है। शिक्षा का अधिकार ही सभी अधिकारों के मूल में है। अधिकार स्वयं ही परिणाम देने मंे समर्थ तब तक नहीं होते जब तक मानवीय क्षमताओं को शिक्षा के द्वारा समुचित विकास न किया जाय।
Keywords
प्राथमिक शिक्षा, स्वतन्त्रता पूर्व, सुसंस्कृत, भौतिक, मानसिक, सामाजिक भावनात्मक