Abstract
International Journal of Advance Research in Multidisciplinary, 2025;3(4):86-89
भारतीय प्रागैतिहासिक चित्र भाषा में सामाजिक निहितार्थ
Author : डाॅ. रुचिन वर्मा
Abstract
भारतीय प्रागैतिहासिक चित्रकला मानव सभ्यता के आरंभिक काल का अमूल्य साक्ष्य है, जो हमारे पूर्वजों की जीवनशैली, धार्मिक भावनाओं, सांस्कृतिक परंपराओं और कलात्मक अभिव्यक्ति का परिचायक है। इन चित्रों का निर्माण उस समय किया गया जब लेखन प्रणाली का विकास नहीं हुआ था, अतः ये चित्र मानव की अभिव्यक्ति का प्रमुख माध्यम बने। भारत में प्रागैतिहासिक काल की चित्रकला का सबसे प्रसिद्ध उदाहरण भीमबेटका की गुफाएँ हैं, जो मध्य प्रदेश में स्थित हैं और यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल हैं। इन चित्रों में दैनिक जीवन के दृश्य जैसे शिकार, नृत्य, युद्ध, पशु-पक्षियों की आकृतियाँ, और धार्मिक अनुष्ठानों के प्रतीक स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं। चित्रों में प्रयुक्त रंग प्राकृतिक खनिजों, पत्थरों, वनस्पतियों और मिट्टी से प्राप्त किए गए थे, जो आज भी अपनी जीवंतता बनाए हुए हैं। लाल, सफेद, पीला और हरा रंग प्रमुख रूप से प्रयोग किए गए, जो उस समय के पर्यावरणीय संसाधनों पर आधारित थे। प्रागैतिहासिक चित्रकला केवल मनोरंजन या सजावट का साधन नहीं थी, बल्कि यह मानव के सामाजिक और धार्मिक जीवन से गहराई से जुड़ी हुई थी। इन चित्रों से यह स्पष्ट होता है कि उस समय के लोग प्रकृति के प्रति गहरी संवेदना रखते थे और अपने जीवन की घटनाओं को प्रतीकात्मक रूप में अभिव्यक्त करते थे। इस प्रकार, भारतीय प्रागैतिहासिक चित्रकला न केवल हमारे इतिहास की कलात्मक विरासत का हिस्सा है, बल्कि यह हमारे सांस्कृतिक विकास की निरंतरता का भी प्रतीक है। यह हमें मानव सभ्यता की आरंभिक चेतना और सृजनशीलता की झलक प्रदान करती है, जो आज भी हमारी कलात्मक परंपराओं को प्रेरित करती है।
Keywords
प्रागैतिहासिक चित्रकला, कलात्मक दृष्टिकोण, रूपाकृतियाॅ, सृजनात्मकता, सामुदायिक चित्र, प्रतीकात्मकता आदि।