Article Abstract
International Journal of Advance Research in Multidisciplinary, 2024;2(1):543-548
ग्रामोत्थान एवं संचार (स्वतंत्रता के पूर्व तथा स्वतंत्रता के पश्चात्-एक मूल्यांकन)
Author : डाॅ. (श्रीमती) नीरज
Abstract
ग्रामीण विकास प्रक्रिया में संचा की भूमिका बड़ी महत्वपूर्ण है। आज भारत में ग्रामीण विकास के लिए संचार के सभी साधन अपनी-अपनी भूमिका निभा रहे हैं। ग्रामीण विकास के लिए सरकारी, अर्द्ध-सरकारी तथा गैर सरकारी सेवाएँ, जैसे सामुदायिक विकास विभाग, समाज कल्याण बोर्ड, भारत सेवक समाज तथा खादी ग्रामोद्योग आयोग आदि प्रयत्नरत हैं। संचार साधनों की सूचना के अनुसार तीन क्षेत्र दृष्टिगत होते हैं। प्रथम, वह क्षेत्र जो कार्य की दृष्टि से अभी अछूता है, दूसरा, वह क्षेत्र जहाँ इस योजना के अन्तर्गत कार्य प्रारम्भ हुआ है किन्तु विकास प्रारम्भिक अवस्था में है, तीसरा, वह क्षेत्र जहाँ वर्षो से कार्य हो रहा है और कुछ उल्लेखनीय विकास हुआ है। भारत में स्वतंत्रता से पूर्व ग्रामीण विकास का प्रारम्भ वर्ष 1901 में सिंचाई आयोग के रूप में हो चुका था इस विकास की ब्यार को आगे बढ़ाते हुए 1921 में डाॅ0 स्पेन्सर हैच के नेतृत्व में भारतण्ड़म की स्थापना भी ग्रामीण जनों के आर्थिक विकास के लिए की गयी थी। इस विकास की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने से संचार साधनों ने भरपूर सहयोग प्रदान किया और आयोगों एवं संगठनों से ग्रामीणों को अवगत कराकर अपनी अहम भूमिका निभाई। संचार साधनों में समाचार पत्र, रेडियो, संगठन, गांव की पाठशाला, पुस्तकालय, पंचायत एवं प्रशिक्षण इत्यादि ने अपनी भूमिका का निर्वहन किया। स्वतन्त्रता के पश्चात् भी इन संचार साधनों द्वारा सरकारी योजनाओं को पूरा करने में सहयोग किया गया। वर्तमान में संचार के साधनों में वृद्धि हई है। जैसे टेलीविजन, कम्प्यूटर, इन्टरनेट, ई-मेल इत्यादि। सभी संचार साधनों की भूमिका समय के अनुसार व स्थितियों, उपलब्ध साधनों के कारण बदलती रहती है।
Keywords
ग्रामोस्थान, संचार, स्वतन्ता पूर्व, स्वतन्त्रता के पश्चात्, इतिहास, संचार साधन।