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Article Abstract

International Journal of Advance Research in Multidisciplinary, 2023;1(1):718-721

विवेकी राय के उपन्यासों में ग्रामीण जीवन की सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक एवं धार्मिक समस्याओं का संक्षिप्त मूल्यांकन

Author : आनन्द सावरण और डाॅ. नवनीता भाटिया

Abstract

विवेकी राय जी ने अपनी ग्रामीण जीवन के प्रति जो मनोदशा व्यक्त की है उसे पढ़कर ऐसा मालूम होता है कि उनका जीवन दर्शन ग्रामीण परिपेक्ष में अधिक रमा है इस कारण से कहा जा सकता है कि गाँव के विषय में जो बात कही जाती है कि भारत गाँव में बसता है यह बात सौ फीसदी सच है किंतु बड़े पदों पर आसीन होने वाले अधिकारियों नेताओं ने गाँव के ह्रदय मानस कि हमेशा चिंता नहीं की और गाँव आज बिछड़ते और पिछड़ते चले गए जिस प्रकार विवेकी राय जी बताते हैं कि मैं शहरी बनना चाहता था किंतु मेरी दृष्टि गाँव में अधिक रमी और मैं शहर में भी आकर के शहरी नहीं बन पाया क्योंकि वह एक सच्चे कृषक का जीवन भोग चुके थे इसी कारण वे शहर की विभिन्न प्रकार की जालसाजी का जीवन को नहीं भोगना चाहते थे इसी प्रकार शहर में एक दूसरे के नजदीक होते हुए भी लोग आपस में आदर सत्कार नहीं करना चाहते जिस प्रकार गाँव में आते जाते लोग एक दूसरे को स्वत ही राम-राम कर लेते हैं और ह्रदय के विभिन्न पक्षों को एक दूसरे से लगातार साक्षात्कार करते रहते हैं क्योंकि किसान में कृषक अकेला ही कार्य नहीं करता पूरा परिवार के साथ कार्य करता है इसी प्रकार आस-पड़ोस के सभी कृषक मिलजुल कर एक दूसरे के लिए सुख दुख के साथी होते हैं इसी कारण से यह जो मनोदशा विवेकी राय की हुई यह एक सच्चे ग्रामीण जीवन की है और इसमें कहा जा सकता है आज की आधुनिकता वादी सोच जो शहरों में हावी है जो लोग गाँव को छोड़कर आए हैं अक्सर कहते हुए सुने जाते हैं कि देसी खाना और देसी नहाना यह गाँव की बात है क्योंकि गाँव में हर प्रकार के फल फूल सब्जी सब पहुंच में होता है अधिकार में होता है क्योंकि अपनी मिट्टी से जुड़े हुए किसान मनमाफिक चीजों को उगा सकता है और शहर में आदमी इनका मजा लेने के लिए कृषकों पर आश्रित होता है यह कृषक श्रम होता है जिन्हें शहरी लोग भागते हैं।

Keywords

विवेकी राय, सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक समस्याओं