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Article Abstract

International Journal of Advance Research in Multidisciplinary, 2024;2(4):129-132

कृषि विकास में यंत्रीकरण की भूमिका

Author : वीनिता कुमारी

Abstract

वर्ममान समय में कृषि उपकरण एवं यंत्र कृषि क्षेत्र की महत्वपूर्ण आगत के रूप में जानी जाती है। उन्नतशील कृषि उपकरण एवं यंत्रों के अभाव में वांछित कृषि उत्पादन एवं उत्पादकता को प्राप्त करना असंभव है। पिछले कुछ दशकों में यह देखा गया है कि कृषि क्षेत्र में विकास को प्राप्त करने में कृषि उपकरण एवं यंत्रों ने महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया है। जब कृषि कार्य हेतु अधिक से अधिक वैज्ञानिक यंत्रों एवं उपकरणों का प्रयोग किया जाता है, तो उसे कृषि का यंत्रीकरण कहा जाता है। कृषि का परंपरागत तकनीकों के स्थान पर आधुनिक यंत्रों एवं मशीनों की सहायता से किया जाना, कृषि का यंत्रीकरण कहा जाता है। प्रो. भट्टाचार्य के अनुसार, “कृषि कार्यों में यंत्रीकरण का आशय भूमि संबंधी कार्यों में जिन्हें प्रायः बैलों, घोड़ों व अन्य पशुओं या मानवीय श्रम द्वारा किया जाता है, यांत्रिक शक्ति के प्रयोग करने से है । कृषि यंत्रीकरण कृषि क्षेत्र में विस्तार करने एवं उत्पादन की लागत को कम करने संबंधी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कृषि का यंत्रीकरण किए जाने के परिणामस्वरूप ही बड़े पैमाने की खेती को संभव बनाया जा सका है। इसके माध्यम से सिंचाई की सुविधाओं का भी विकास किया गया है। कृषि में यंत्रों एवं मशीनों के उपयोग से श्रम की कार्यकुशलता में वृद्धि हुई है, जिससे कि प्रति श्रमिक उत्पादन में वृद्धि परिलक्षित हुई है। कृषि यंत्रीकरण को लाभकारी कृषि परिचालन का महत्वपूर्ण आयाम माना जाता है। भारत सरकार के प्रयासों के माध्यम से कृषकों द्वारा उपयोग में लायी जा रही कृषि मशीनरी की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है। बिहार में भी राज्य सरकार के द्वारा इस दिशा में सकारात्मक प्रयास किए गए हैं, जिसके माध्यम से कृषकों को यंत्रीकृत खेती को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया गया है।

Keywords

कृषि उपकरण, उन्नतशील कृषि, वांछित कृषि उत्पादन, उत्पादकता, परंपरागत तकनीक, श्रम की कार्यकुशलता