Article Abstract
International Journal of Advance Research in Multidisciplinary, 2023;1(1):869-872
भारतीय दर्शन परम्परा में भिन्न-भिन्न यौगिक परम्पराओं का संक्षिप्त अध्ययन
Author : कृष्णा सिंह अधिकारी, डाॅ. प्रवीन त्रिपाठी
Abstract
हमारी भारत भूमि चिरकाल से ही अनेक महात्माओं, विद्वानों, तपस्वियों तथा प्रतिभापूर्ण मनीषियों की जननी रही है। भारत के इतिहास में इन महापुरूषों का उदय उस दीप्तिमान नक्षत्र की भांति हुआ जिसके ज्ञान रूपी प्रकाश से यह भारत भूमि जगमगा उठी। जब-जब अधर्म की वृद्धि तथा धर्म का लोप होता गया, तब-तब धर्म की स्थापना के लिए किसी न किसी महापुरूष ने इस पावन धरती पर जन्म लिया। इन महापुरूषों ने समय-समय पर जनता की भलाई की तथा उनकी सोई हुई भावनाओं को जागृत कर उन्हें उनके कत्र्तव्य मार्ग पर अग्रसर होने की प्रेरणा दी।भारतवर्ष महात्माओं और योगियों का देश है। जिस प्रकार योग ज्ञान के बिना योगी को नहीं जाना जा सकता है उसी भांति योगी जो जाने बिना आध्यात्मिक भारत को नहीं जाना जा सकता। इसलिए कहा जाता है कि योग बिना भारत नहीं और भारत बिना योग नहीं। अतः योग साधना सनातन परम्परा है एवं प्रत्येक मनुष्य का आवश्यक कर्तव्य भी। योग-विद्या भारतवर्ष की अमूल्य निधि है, जो सुदूर अतीत काल से अविच्छिन्न रूप में गुरु-परम्परापूर्वक चली आ रही है। योग ही एक ऐसी विद्या है जिसमें वाद-विवाद को कहीं स्थान नहीं मिलता है। यही वह एक कला है जिसकी साधना से अनेक लोग अजर-अमर होकर देह रहते ही सिद्ध पदवी को पा गये हैं। युग-युगों से चला आ रहा यह योग वस्तुतः भारतीय ऋषि, मुनियों तथायोगियों के अध्यवसाय एवं साधनालब्ध अन्तर्जगत का महत्वपूर्ण अन्तर्विज्ञान है। इसी योग समाधि के द्वारा वैदिक काल में कितने ही ब्रह्ममोपासक मन्त्र-द्रष्टा ऋषि बन गये, जिनका साक्ष्य वेद की ऋचाएँ हैं।
Keywords
भारतीय दर्शन, यौगिक परम्पराआ, दीप्तिमान, नक्षत्र, शिक्षा